Friday, June 27, 2014

Intellectual terrorism, Naxalism & India

कभी मित्रो आपने सोचा है की जो नक्सली आतंकवाद देश के आदिवासी ग्रामीण हिस्सों में जब जड़े जमा चुका है तो इनका अगला पड़ाव क्या होगा?  

क्या यह गावों में ही मर जायेगा या मर चूका या इसने आगे भी कुछ अपना फैलाव किया है। 

इसमें कोई दो मत नहीं की नक्सलियों के पास बौद्धिक क्षमता असीमित है उनका पुराना समृद्ध इतिहास है जो वो रूस और चीन से आयात कर के लाये है और उन्होंने भरसक कोशिश करी की वो भारतीय समाज में इसको घोले।  

कांग्रेस ने उनको उपजाऊ जमीन दी न केवल ग्रामीण क्षेत्रो में बल्कि दिल्ली और अन्य शहरी क्षेत्रो में बड़े बड़े प्रितिष्ठानो में उनको प्रतिष्ठित भी किया और यह उनका ही जलवा है जिससे देश के बड़े शहरी वर्ग को राष्ट्रवाद की अमृत छाया से लम्बे समय तक अलग रखा। 

मित्रो पिछले एक दशक में इस वामंगिये वर्ग की महत्वकांक्षाओं में जबरदस्त उछाल आया है अब कौन गावों में इनसे जुड़ा बौद्धिक वर्ग अपना शरीर जर जर करे इसलिए इन्होने शहरों की तरफ रुख किया। इसको आप चम्बल के डकैतो से तुलना कर सकते है जिन्होंने पैसे की अवाक् असीमित होने की स्थिति में शहरों में आरामदायक आशियाने  तलाशे और मजे से जीवन यापन किया।

वाम नेतृत्व हताश और पस्त दीखता है पर है नहीं। अब वाम ने पूरा जोर महनगरो में कर लिया है इस बार तो कॉमरेड हरकिशन सिंह सुरजीत की धरती पर अपना झंडा भी लहरा दिया। मित्रो इस "बौद्धिक आतंकवाद" को ठीक से समझना होगा क्यूंकि जिस प्रकार नक्सलवाद को शुरू में ठीक से नहीं समझा और देश के कई जिलो को यह लील गया ठीक वैसे ही भारत के शहरी लोग आज के "बौद्धिक आतंकवाद" जो की नक्सली विचारो के छौंक से वामदलियो ही  है को हलके में ले रहे है।  इस बौद्धिक आतंकवाद का चेहरा आज "आपिये" है जिनको "आपिस्ट" भी कह सकते है। 

तो अच्छा चलिए  पहले इस गलीच आतंकवाद का प्रेम से जायजा लेते है।  यह चेहरा बड़े ही मार्मिक और मानवीय शकल में हमारे शहरों में पसरा और शहरी और अर्ध ग्रामीण क्षेत्रो में बड़ी तेजी से पैर पसार रहा है। इनके कई नुस्खे है पहला तो जितने भी ऐतिहासिक शख्सियत है उन को अपने पोस्टर पर चस्पाओ उनसे हकीकत में सम्बन्ध हो या न हो वो अलहयेदा बात है। फिर अपने अपने क्षेत्रो के सम्मानजनक और चर्चित हस्तिओं को लोकतंत्र में अवसर के नाम पर जोड़ो।  देश के युवाओ को मनोरंजन और अराजकता का अट्रैक्शन दिखा कर शामिल करो और फिर गांधी की टोपी पेहेन कर सड़को पर दंगा करो। दंगे में पुलिस के हस्तक्षेप के बाद उस से लड़ो जिस से भगत सिंह और चंद्रशेखर की छवि बने और फिर पीटते हुए तुरंत गांधी के सत्यग्रही के मोड़ में आ जाओ।  इनका असर यह होगा की टीवी पर अच्छी फुटेज मिलेगी क्यूंकि उसका भी आधार है और इनके लिए बड़ी संख्या में टीवी चैनल इनको उर्वर भूमि प्रदान करते है क्यूंकि उनको २४X७ न्यूज़ मिल जाता है।  इतनी बड़ी संख्या में न्यूज़ चैनल होने की वजह से टीवी रिपोर्टर स्थापित नेताओ की ठसक झेल नहीं पाते और "आपिस्ट" तो सड़क पर पड़े मिल ही जाते है और बन जाती है लीड स्टोरी प्राइम टाइम के लिए।  दोनों को फायदा और दर्शको का डीनर पर मनोरंजन परन्तु देश का नुक्सान।  

मित्रो मैं एक गंभीर बात करता हूँ जिस प्रकार नक्सलिओ को देश ने मजाक मजाक में लिया था और आज देश पर एक आतंक का बदनुमा धब्बा लग गया उसी प्रकार "आपिस्ट" देश के साथ वो ही करने जा रहे है जो नक्सलिओ ने ग्रामीण भारत के एक बड़े हिस्से में कर दिया।  मित्रो कई भोले लोग इस पर बड़ी दूर की कौड़ी लाने की बात कहेंगे परन्तु जो अरविन्द केजरीवाल सरे आम मीडिया की सामने अपने को "अराजकतावादी " स्वीकार करता है तो उसकी इंटेंशन कोई दबी छुपी बात तो अब रही नहीं। अराजकवादिता एक लो डिग्री का आतंकवाद है। कश्मीर में असाम में पंजाब में जब भी आतंकवाद शुरू हुआ था तो सहानुभूति से फिर अराजकता से और फिर कम्प्लीट फुल एंड फाइनल आतंकवाद के गड बन गए। चलो देश में आतंकवाद शुरू भी हुआ परन्तु उनके लक्ष्य सामने थे वो अच्छे थे या बुरे वो बहस का विषय है परन्तु "आपिस्ट" का तो कोई लक्ष्य ही नहीं उनका घोषित उदेश्ये आज के समय में जैसे की श्री केजरीवाल जी ने कहा की "मैं अराजकतावादी हूँ "  अराजकता फैलाना है।  इसका मतलब यह निकलता है की देश में अराजकता एक खास उदेश्य के लिए फैलाई जा रही है जो किसी बड़े लक्ष्य की और इंगित करती है अर्थात एक बड़ा कार्यकर्म है जो आने वाले समय में इस अराजक वातावरण को एक डिग्री ऊपर ले जाकर देश के लिए किसी आतंकवाद का बड़ा संकट खड़ा करेगा।  और मैं थोड़ा और सख्त होउ तो यह है कौन ? कुछ फ्रस्ट्रेटिड पूर्व नौकरशाह, गिरियाए और धकियाए पिटे हुए पुराने नेता या खिलंदड़ मनोरंजनकर्ता।  इस से ज्यादा यह कोई है नहीं इनकी ऊर्जा कुछ एक एनजीओ और बुढ़ाते प्रोफ़ेसर से ज्यादा कुछ नहीं।  ये जो दवाई खाते है उस से डिप्रेशन दूर होता है और यह ही इनकी जमा पूंजी है।  नहीं तो कोई गैरत वाला इंसान होता वो जनता के द्वारा लोकसभा में ठुकराये जाने पर अगले ही दिन इस बेशर्मी और बेहयाई से सड़क पर गुंडई का नंगा नाच न करता, जिसमे इतने बेसिक संस्कार भी नहीं उस से आप देश के लिए कुछ उम्मीद करना दीवारो में सर मारने जैसा है। 

केजरीवाल जी दुनिया में दो ही चीजे होती है या तो समाज में संविधान के हिसाब से चलो या संविधान से, नहीं चलना तो लोकतंत्र के रास्ते पर चलके संसद में बहुमत लेकर देश का संविधान अपने हिसाब से बदल दो।  यह क्या हुआ की आप जनता से ठुकराये भी गए हो और उस जनता पर गुंडई से धौंस भी जमा रहे हो।  वैसे तो मैं सीधा सीधा देश की सरकार से और मीडिया से अनुरोध करूँगा की जाने अनजाने आप लोग भी देश में इस अराजकता को बढ़ाने में अपना योगदान दे रहे हो। अरे जिस राहुल गांधी को आप भोन्दु और न जाने क्या कहते हो वो ही तुम से लाख गुना अच्छा है जो  आज अमेठी में अपनी जनता के बीच वापस जाकर उनमे आशावाद का जन्म दे रहा है।  उसमे लाख कमी हो परन्तु लोकतंत्र में उसकी आस्था मेरे लिए संदेय से परे है इस मौजूदा मुद्दे पर।  क्या होता यदि गलती से जनता इन 'आपीय" जोकरों को जीता भी देती, तो १२० करोड़ लोगो की इज्जत दुनिया की नजरो में दो कौड़ी की न होती।

केजरीवाल आप ईमानदारी की बात करते हो तो ऐसा लगता है की श्वान दहाड़ रहे है। जिन लोगो को सुचिता और ईमानदारी का कखग नहीं आता वो देश को ईमानदारी का शिकंजी पिला रहे है। अरे जो कुछ एक नोटों, दिल्ली में एक घर और अपनी अर्धांग्नी की एक पोस्टिंग के लिए अपने चरित्र से समझोता कर ले, अपने बच्चो के सर पर हाथ रख कर झूटी कसम खा ले उस से  कुछ भी उम्मीद करना अरंडी के पेड़ के निचे खड़ा हो कर आम की आशा करना होगा।  

आपकी प्रसिद्धि की चाहत उस बूढी होती वैश्या की तरह है जिसे अपने चेहरे की झुर्रिया उसी को नहीं दिखती बाकी सारी दुनिया का उसका बुढ़ाते करूप चेहरा दीखता है। 

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